Thursday 9 July 2020

नेत्रदान ने राजाराम को दिया नया जीवनदान, डॉक्टर अशोक शर्मा का जताया आभार

नेत्रदान ने राजाराम को दिया नया जीवनदान, डॉक्टर अशोक शर्मा का जताया आभार
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शिमला। जिस ज़िंदगी को खत्म करने के लिए बिलासपुर का राजाराम चार बार भाखड़ा नदी में कूदाए आज वह उसी ज़िंदगी को भरपूर जीने के लिए भगवान का शुक्रिया करते हैं और जीवन जीने की इच्छा देने के लिए डॉक्टर अशोक शर्मा को भी।
सम्भव था आँखों से देख नहीं पाने के कष्ट को खतम करने के लिए राजाराम आत्महत्या की एक कोशिश और भी करते, लेकिन छोटे भाई ने राजाराम को अंधेपन के कष्ट से छुटकारा दिलाने का फ़ैसला कर लिया और बड़े भाई के मन में जीवन जीने की इच्छा पैदा की। जनरल चेकअप के लिए आज कोर्निया सेंटर पहुँचे राजाराम इस जीवन को डॉक्टर शर्मा की ओर से दिया हुआ गिफ़्ट बताते हैं।


राजाराम अब 75 साल के हैं। वे हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर के एक गाँव में रहने वाले हैं। पेशे से किसान राजाराम को बीस साल पहले खेत में काम करते हुए आँख में चोट लग गयी थी। उनकी एक आँख में बचपन से ही रोशनी नहीं थी। दूसरी आँख में चोट लग जाने के बाद भी उन्होंने किसी डॉक्टर से सलाह नहीं ली बल्कि घरेलू नुस्ख़े आज़माने शुरू कर दिए। इससे उनकी आँख में इन्फ़ेक्शन बढ़ गया। और आँख का कोर्निया ख़राब हो गया।
डॉक्टर अशोक शर्मा के मुताबिक़, आमतौर पर गाँवों में चोट लगने को तब तक गम्भीर नहीं माना जाता जब तक कि ब्लीडिंग ना हो रही हो। ऐसे में राजाराम ने भी आँख में चोट लगने के बाद लगातार आँख से पानी बहने को गम्भीरता से नहीं लिया।
यह भी देखा जाता है कि गाँवों में लोग आँख में चोट लगने पर गुलाब जल डाल लेते हैं या केमिस्ट से आई-ड्रॉप्स ले आते हैं, ऐसे आई-ड्रॉप्स में स्टेरॉयड होते हैं जो ऊपरी ज़ख़्म तो भर देते हैं और आँख में चोट लगने से होने वाली जलन को कम कर देते हैं लेकिन अंदर इन्फ़ेक्शन फैलता जाता हैं।
राजाराम की ऐसी ही गलती का नतीज़ा यह हुआ कि उनकी आँख का कोर्निया ख़राब हो गया और वह पूरी तरह से अंधेपन का शिकार हो गयाण् अंधेपन से जूझना राजाराम के लिए आसान नहीं थाण् हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर होना बहुत तकलीफ़देह था। परिवार के सदस्य भी कामकाज में व्यस्त हो जाने के कारण हर समय साथ नहीं रह पा रहे थे।
ऐसे में हताश होकर राजाराम ने अपना जीवन खतम करने का फ़ैसला लिया और एक दिन किसी तरह भाखड़ा नदी तक जा पहुँचा और नदी में छलांग लगा दी।
कहावत है कि जाको राखे साइयाँ मार सके ना कोय, वहाँ से गुजर रहे लोगों ने राजाराम को कूदते देखा और उफनती नदी से बचा लाए, लेकिन अंधेपन की वजह से राजाराम अपने जीवन से इतना निराश हो चुका था कि उसने कुल चार बार भाखड़ा नदी में कूद कर आत्महत्या करने की कोशिश की। लेकिन हर बार लोगों ने उसे मौत के मुँह में जाने से बचा लिया। तब उन्होनें अशोक शर्मा से सम्पर्क किया। डॉक्टर शर्मा कोर्निया विशेषज्ञ हैं और अब तक पाँच हज़ार से अधिक कोर्निया ग्राफ़्ट कर चुके हैं।
उन्होंने राजाराम की आँख की पुतली, कोर्निया हैं, बदलने का तरीक़ा बताया। कोर्निया ग्राफ़्ट किसी अन्य व्यक्ति से मिले कोर्निया को ज़रूरतमंद मरीज़ की आँख में सर्जरी करके लगाया जाता है।
डॉक्टर शर्मा के मुताबिक़,जागरूकता के बावजूद गाँवों में लोग आँखों की बीमारी के प्रति लापरवाही बरतते हैं। बच्चों की आँखों में जलन होने या चोट लगने पर गम्भीरता से नहीं लेते। कुछ दिन बाद भीतर से इन्फ़ेक्शन फैल जाने के कारण ट्रांसपेरेंट झिल्ली जैसा कोर्निया सफ़ेद हो जाता है जिससे बाहर की रोशनी रेटिना तक नहीं जा पाती और मरीज़ अंधेपन का शिकार हो जाता है।
डॉक्टर शर्मा ने बताया कि राजाराम की आँख का कोर्निया ग्राफ़्ट किया गया और आज बीस साल बाद भी उनकी आँख की रोशनी सामान्य है। उनकी आँख की रोशनी ने उन्हें उस ज़िंदगी को जीने की इच्छा भी दी जिसे वो बीस साल पहले ख़त्म कर देना चाहता था।

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