Saturday 27 June 2020

लॉकडाउन में दोगुने हुए ड्राइ आइ सिंड्रोम के मरीज, मोबाइल-लैपटॉप के अधिक इस्तेमाल का असर



लॉकडाउन में दोगुने हुए ड्राइ आइ सिंड्रोम के मरीज, मोबाइल-लैपटॉप के अधिक इस्तेमाल का असर


चंडीगढ़, [विशाल पाठक]। कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन में लोग घरों में बंद रहे। इस कारण उन्‍होंंने मोबाइल फोन और लैपटॉप का अत्‍यधिक इस्तेमाल किया। इस कारण काफी संख्‍या में लोग ड्राइ आइ सिंड्रोम के शिकार हो गए। मोबाइल और लैपटॉप के अधिक इस्‍तेमाल से ड्राइ आइ सिंड्रोम का खतरा बढ़ता है। टाइम पास करने के चक्कर में लोगों ने लॉकडाउन में मोबाइल, कंप्यूटर और टीवी देख-देखकर लोगों ने आंखें खराब कर लीं। चंडीगढ़ में ड्राइ आइ सिंड्रोम के मरजी दोगुने हो गए।
आंखों की बीमारी जेरोऑप्थालमिया यानी आंखों में सूखेपन के मरीज आ रहे सामने
लॉकडाउन के दौरान आंखों की बीमारी जेरोऑप्थालमिया यानी आंखों में सूखेपन के मरीज कई गुना बढ़ गए हैं। इसके अलावा आंखों में थकान के मामले भी बढ़ गए। आंखों में नमी रखने वाले लुब्रिकेंट आइ ड्रॉप्स की सेल भी दोगुनी से भी अधिक हो गई है। चंडीगढ़ पीजीआइ के डायरेक्‍टर प्रोजेक्ट जगतराम और पूर्व सीनियर प्रोफेसर और चंडीगढ़ में कोर्निया सेंटर में नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अशोक शर्मा ने इस हालत को चिंताजनक बताया।
मोबाइल कंपनियों के आंकड़ों में खुलासा : लॉकडाउन में बढ़े डाटा यूजर्स
कंपनीज के डाटा इस्तेमाल के आंकड़े बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान लोगों में मोबाइल फोन की औसत स्क्रीन टाइम कई गुणा बढ़ी है। इसका नतीजा यह हुआ कि कई घंटे तक मोबाइल, कंप्यूटर स्क्रीन और टेलीविजन देखते रहने के कारण लोगों की आंखों में थकान और सूखेपन की बीमारी बढ़ गई।
कंप्यूटर विजन सिंड्रोम के मामले ज्‍यादा बढ़े
पीजीआइ के डायरेक्टर प्रो. जगतराम और पीजीआइ चंडीगढ़ के पूर्व सीनियर प्रोफेसर डॉक्टर अशोक शर्मा ने बताया कि कंप्यूटर पर काम करते रहने वालों में सीवीएस यानी कंप्यूटर विजन सिंड्रोम के मामले पहले से ज्यादा देखने को मिले हैं। इस तरह आंखों में नमी की मात्रा कम हो जाने को मेडिकल भाषा में जेरोऑप्थालमिया कहा जाता है। प्राकृतिक तौर पर विटामिन ए की कमी से भी आंखों में नमी बनाए रखने वाले लेक्रिमल ग्लैंड ठीक से काम नहीं करते। जिसे जेरोऑप्थालमिया या ड्राइ आइ सिंड्रोम कहा जाता है।
लोगों ने दवाइयों का स्टॉक भी किया
डॉक्टर अशोक शर्मा ने बताया कि पिछले साल 1 मई से 15 जून के दौरान उनके पास कंप्यूटर विजन सिंड्रोम का मात्र एक केस आया था। यह इस साल लॉकडाउन पीरियड में बढ़कर 22 हो गए हैं। इसी तरह पिछले साल ड्राइ आइ सिंड्रोम के कुल 18 मरीज आए थे। इस साल संख्या बढ़कर 28 हो गई है। जाहिर है, लॉकडाउन में लगातार कई घंटों तक इलेक्ट्रोनिक गैजेट्स जैसे मोबाइल फोन और टीवी देखते रहने के कारण रेडिएशन से आंखों की नमी कम हुई है।
उन्‍होंने बताया क‍ि आंखों में नमी बनाए रखने के लिए इस्तेमाल होने वाले मिथाइल सेल्यूलोज आइ ड्रॉप्स की बिक्री में इजाफा हुआ है। सेक्टर-27 के गोसाईं मेडिकोज के मुताबिक लॉकडाउन में फंसे होने के कारण लोग ने दवाइयों का स्टॉक भी जमा किया। इससे भी पिछले समय के दौरान आइ ड्रॉप्स की सेल में बढ़ोतरी हुई है।

Monday 15 June 2020

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Monday 8 June 2020

कोरोना महामारी की वजह से पाबंदियाँ होने के बावजूद कानु ज़िद करके नंगल से चंडीगढ़ डॉक्टर अंकल के साथ जन्मदिन का केक काटने यहाँ पहुँची

अनुराधा शर्मा




चंडीगढ़। तीन साल की कानु ख़ास तौर से पंजाब के नंगल से चंडीगढ़ आई है। अपना जन्मदिन मनाने,

उनके साथ जिन्होंने उसे उसे इस दुनिया की रोशनी दिखाई। माँ-बाप नहीं, बल्कि नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अशोक शर्मा के साथ, जिनकी बदौलत वो रंगीन दुनिया को देख चहक रही है और अपने माँ-बाप के चेहरों पर उस चहक की ख़ुशी भी देख पा रही है। कोरोना महामारी की वजह से पाबंदियाँ होने के बावजूद कानु ज़िद करके शर्मा डॉक्टर अंकल के साथ जन्मदिन का केक काटने यहाँ पहुँची।

कानु के माँ-बाप उसे दुनिया में तो ले आए थे, लेकिन उसकी दुनिया की रोशनी में नहीं ला पाए। एक जन्म जात कमी के चलते कानु की आँखों की रोशनी नहीं आ आ पायी।

जैसे ही माँ-बाप को यह पता चला कि उनकी फूल सी बच्ची देख नहीं पा रही है तो उनके पैरों तले जैसे ज़मीन ही खिसक गई। एक महीने की बच्ची को लेकर उसके माँ-बाप डॉक्टरों के चक्कर लगाने लगें लेकिन हर डॉक्टर ने हाथ खड़े कर दिए। तब एक दिन उन्हें चंडीगढ़ में डॉक्टर अशोक शर्मा के बारे में पता चला।

डॉक्टर शर्मा शिमला के आईजीएमसी के बाद चंडीगढ़ पीजीआई में एसोसिएट प्रोफेसर और आई कंसलटेंट ऑफ़ मेरीलैंड यु ऐस ऐ कॉर्निया फ़ेलो रहे हैं।

डॉक्टर अशोक शर्मा के मुताबिक  “यह कह लीजिए कि बच्ची की दोनों आंखे और कॉर्निया पूरण रूप से विकसित नहीं था । कोर्निया एक पारदर्शी झिल्ली होती है जिससे होकर रोशनी आँख में रेटिना तक पहुँचती है। कानु की दोनों आँखों के कोर्निया ओपेक थे। देखने में सफ़ेद परत की तरह।  ‘कोर्नियल ओपेसिटी एक ऐसी बीमारी होती है जो बहुत कम बच्चों में देखने को मिलती है। मेडिकल जर्नल्स के मुताबिक़ एक लाख बच्चों में से तीन बच्चों को जन्म से ही होती है। ऐसे बच्चों की आँखों में रोशनी कोर्निया से होकर रेटिना तक नहीं पहुँच पाती।

कितना मुश्किल था इलाज….
कानु को जब डॉक्टर अशोक शर्मा के पास इलाज के लाया गया तो वो छह महीने की थी। डॉक्टर शर्मा के मुताबिक़ इस बीमारी का एक ही इलाज है और वो है कोर्निया ग्राफ़्ट। लेकिन इतने छोटे बच्चे का कोर्निया ग्राफ़्ट करना भी अपने आप में एक चुनौती थी।

डॉक्टर अशोक शर्मा

डॉक्टर शर्मा ने बताया कि तकनीकी तौर पर कहें तो इतने छोटे बच्चे की आँख का कोर्निया छोटा होता है उसकी सर्जरी करना अपने आप में एक सुपर स्पेशिएलिटी होती है। साधारण तय कोर्निया का साइज़ 12 मिलीमीटर का होता है। छह महीने की बच्ची का कोर्निया सिर्फ़ आठ मिलीमीटर ही था। ऐसे में कोर्निया ग्राफ़्ट सिर्फ़ छह मिलीमीटर लग सकता था।

क्या सावधानियाँ ज़रूरी होती हैं….
इसके अलावा छोटे बच्चों में कोर्निया ग्राफ़्ट करते समय डोनर कोर्निया में ज़रूरी ‘एपीथिलियल सेल’ की संख्या सामान्य से अधिक होनी चाहिए ताकि उम्र भर बच्चों को कोई यह समस्या फिर से न आए। कोर्निया डोनर ढूँढना भी एक चुनौती थी। सामान्य ग्राफ़्ट के लिए डोनर कोर्निया में प्रति वर्ग मिलीमीटर दो हज़ार एपीथिलीयल सेल बहुत होते हैं, लेकिन बच्चों के मामले में इनकी संख्या तीन हज़ार से अधिक चाहिए होती है।

अब तक पाँच हज़ार से अधिक वयस्क मरीज़ों और बच्चों में कोर्नियल ओपेसिटी के मामलों में दो सौ से अधिक कोर्निया ग्राफ़्ट कर चुके डॉक्टर अशोक शर्मा का कहना है कि बच्चों में कोर्निया ग्राफ़्ट कुछ समय बाद रिजेक्ट हो जाने का ख़तरा बड़ी उम्र के मरीज़ों के मुक़ाबले अधिक होता है, जिससे बचने के लिए बहुत अधिक सावधानियाँ बरतनी होती हैं, इन सावधानियों में बच्चे को दिया जाने वाला जनरल एनिस्थिसिया भी अहम होता है।

कानु के केस में बच्ची की एक आँख की सर्जरी छह महीने की उम्र में की गई और एक महीने बाद दूसरी आँख की। उसके बाद कुछ समय तक दवाएं दी जाती रही। कानु इस साल से स्कूल जाने लगेगी।

डॉक्टर शर्मा के मुताबिक़, “सफल सर्जरी के बाद जब बच्ची ने पलकें झपकाई और मुस्कराई तो मुझे महसूस हुआ कि मैंने समाज और मानवजाति की भलाई के लिए अपना योगदान दिया है”।