अनुराधा शर्मा
चंडीगढ़। तीन साल की कानु ख़ास तौर से पंजाब के नंगल से चंडीगढ़ आई है। अपना जन्मदिन मनाने,
उनके साथ जिन्होंने उसे उसे इस दुनिया की रोशनी दिखाई। माँ-बाप नहीं, बल्कि नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अशोक शर्मा के साथ, जिनकी बदौलत वो रंगीन दुनिया को देख चहक रही है और अपने माँ-बाप के चेहरों पर उस चहक की ख़ुशी भी देख पा रही है। कोरोना महामारी की वजह से पाबंदियाँ होने के बावजूद कानु ज़िद करके शर्मा डॉक्टर अंकल के साथ जन्मदिन का केक काटने यहाँ पहुँची।
कानु के माँ-बाप उसे दुनिया में तो ले आए थे, लेकिन उसकी दुनिया की रोशनी में नहीं ला पाए। एक जन्म जात कमी के चलते कानु की आँखों की रोशनी नहीं आ आ पायी।
जैसे ही माँ-बाप को यह पता चला कि उनकी फूल सी बच्ची देख नहीं पा रही है तो उनके पैरों तले जैसे ज़मीन ही खिसक गई। एक महीने की बच्ची को लेकर उसके माँ-बाप डॉक्टरों के चक्कर लगाने लगें लेकिन हर डॉक्टर ने हाथ खड़े कर दिए। तब एक दिन उन्हें चंडीगढ़ में डॉक्टर अशोक शर्मा के बारे में पता चला।
डॉक्टर शर्मा शिमला के आईजीएमसी के बाद चंडीगढ़ पीजीआई में एसोसिएट प्रोफेसर और आई कंसलटेंट ऑफ़ मेरीलैंड यु ऐस ऐ कॉर्निया फ़ेलो रहे हैं।
डॉक्टर अशोक शर्मा के मुताबिक “यह कह लीजिए कि बच्ची की दोनों आंखे और कॉर्निया पूरण रूप से विकसित नहीं था । कोर्निया एक पारदर्शी झिल्ली होती है जिससे होकर रोशनी आँख में रेटिना तक पहुँचती है। कानु की दोनों आँखों के कोर्निया ओपेक थे। देखने में सफ़ेद परत की तरह। ‘कोर्नियल ओपेसिटी एक ऐसी बीमारी होती है जो बहुत कम बच्चों में देखने को मिलती है। मेडिकल जर्नल्स के मुताबिक़ एक लाख बच्चों में से तीन बच्चों को जन्म से ही होती है। ऐसे बच्चों की आँखों में रोशनी कोर्निया से होकर रेटिना तक नहीं पहुँच पाती।
कितना मुश्किल था इलाज….
कानु को जब डॉक्टर अशोक शर्मा के पास इलाज के लाया गया तो वो छह महीने की थी। डॉक्टर शर्मा के मुताबिक़ इस बीमारी का एक ही इलाज है और वो है कोर्निया ग्राफ़्ट। लेकिन इतने छोटे बच्चे का कोर्निया ग्राफ़्ट करना भी अपने आप में एक चुनौती थी।
डॉक्टर अशोक शर्मा
डॉक्टर शर्मा ने बताया कि तकनीकी तौर पर कहें तो इतने छोटे बच्चे की आँख का कोर्निया छोटा होता है उसकी सर्जरी करना अपने आप में एक सुपर स्पेशिएलिटी होती है। साधारण तय कोर्निया का साइज़ 12 मिलीमीटर का होता है। छह महीने की बच्ची का कोर्निया सिर्फ़ आठ मिलीमीटर ही था। ऐसे में कोर्निया ग्राफ़्ट सिर्फ़ छह मिलीमीटर लग सकता था।
क्या सावधानियाँ ज़रूरी होती हैं….
इसके अलावा छोटे बच्चों में कोर्निया ग्राफ़्ट करते समय डोनर कोर्निया में ज़रूरी ‘एपीथिलियल सेल’ की संख्या सामान्य से अधिक होनी चाहिए ताकि उम्र भर बच्चों को कोई यह समस्या फिर से न आए। कोर्निया डोनर ढूँढना भी एक चुनौती थी। सामान्य ग्राफ़्ट के लिए डोनर कोर्निया में प्रति वर्ग मिलीमीटर दो हज़ार एपीथिलीयल सेल बहुत होते हैं, लेकिन बच्चों के मामले में इनकी संख्या तीन हज़ार से अधिक चाहिए होती है।
अब तक पाँच हज़ार से अधिक वयस्क मरीज़ों और बच्चों में कोर्नियल ओपेसिटी के मामलों में दो सौ से अधिक कोर्निया ग्राफ़्ट कर चुके डॉक्टर अशोक शर्मा का कहना है कि बच्चों में कोर्निया ग्राफ़्ट कुछ समय बाद रिजेक्ट हो जाने का ख़तरा बड़ी उम्र के मरीज़ों के मुक़ाबले अधिक होता है, जिससे बचने के लिए बहुत अधिक सावधानियाँ बरतनी होती हैं, इन सावधानियों में बच्चे को दिया जाने वाला जनरल एनिस्थिसिया भी अहम होता है।
कानु के केस में बच्ची की एक आँख की सर्जरी छह महीने की उम्र में की गई और एक महीने बाद दूसरी आँख की। उसके बाद कुछ समय तक दवाएं दी जाती रही। कानु इस साल से स्कूल जाने लगेगी।
डॉक्टर शर्मा के मुताबिक़, “सफल सर्जरी के बाद जब बच्ची ने पलकें झपकाई और मुस्कराई तो मुझे महसूस हुआ कि मैंने समाज और मानवजाति की भलाई के लिए अपना योगदान दिया है”।
चंडीगढ़। तीन साल की कानु ख़ास तौर से पंजाब के नंगल से चंडीगढ़ आई है। अपना जन्मदिन मनाने,
उनके साथ जिन्होंने उसे उसे इस दुनिया की रोशनी दिखाई। माँ-बाप नहीं, बल्कि नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अशोक शर्मा के साथ, जिनकी बदौलत वो रंगीन दुनिया को देख चहक रही है और अपने माँ-बाप के चेहरों पर उस चहक की ख़ुशी भी देख पा रही है। कोरोना महामारी की वजह से पाबंदियाँ होने के बावजूद कानु ज़िद करके शर्मा डॉक्टर अंकल के साथ जन्मदिन का केक काटने यहाँ पहुँची।
कानु के माँ-बाप उसे दुनिया में तो ले आए थे, लेकिन उसकी दुनिया की रोशनी में नहीं ला पाए। एक जन्म जात कमी के चलते कानु की आँखों की रोशनी नहीं आ आ पायी।
जैसे ही माँ-बाप को यह पता चला कि उनकी फूल सी बच्ची देख नहीं पा रही है तो उनके पैरों तले जैसे ज़मीन ही खिसक गई। एक महीने की बच्ची को लेकर उसके माँ-बाप डॉक्टरों के चक्कर लगाने लगें लेकिन हर डॉक्टर ने हाथ खड़े कर दिए। तब एक दिन उन्हें चंडीगढ़ में डॉक्टर अशोक शर्मा के बारे में पता चला।
डॉक्टर शर्मा शिमला के आईजीएमसी के बाद चंडीगढ़ पीजीआई में एसोसिएट प्रोफेसर और आई कंसलटेंट ऑफ़ मेरीलैंड यु ऐस ऐ कॉर्निया फ़ेलो रहे हैं।
डॉक्टर अशोक शर्मा के मुताबिक “यह कह लीजिए कि बच्ची की दोनों आंखे और कॉर्निया पूरण रूप से विकसित नहीं था । कोर्निया एक पारदर्शी झिल्ली होती है जिससे होकर रोशनी आँख में रेटिना तक पहुँचती है। कानु की दोनों आँखों के कोर्निया ओपेक थे। देखने में सफ़ेद परत की तरह। ‘कोर्नियल ओपेसिटी एक ऐसी बीमारी होती है जो बहुत कम बच्चों में देखने को मिलती है। मेडिकल जर्नल्स के मुताबिक़ एक लाख बच्चों में से तीन बच्चों को जन्म से ही होती है। ऐसे बच्चों की आँखों में रोशनी कोर्निया से होकर रेटिना तक नहीं पहुँच पाती।
कितना मुश्किल था इलाज….
कानु को जब डॉक्टर अशोक शर्मा के पास इलाज के लाया गया तो वो छह महीने की थी। डॉक्टर शर्मा के मुताबिक़ इस बीमारी का एक ही इलाज है और वो है कोर्निया ग्राफ़्ट। लेकिन इतने छोटे बच्चे का कोर्निया ग्राफ़्ट करना भी अपने आप में एक चुनौती थी।
डॉक्टर अशोक शर्मा
डॉक्टर शर्मा ने बताया कि तकनीकी तौर पर कहें तो इतने छोटे बच्चे की आँख का कोर्निया छोटा होता है उसकी सर्जरी करना अपने आप में एक सुपर स्पेशिएलिटी होती है। साधारण तय कोर्निया का साइज़ 12 मिलीमीटर का होता है। छह महीने की बच्ची का कोर्निया सिर्फ़ आठ मिलीमीटर ही था। ऐसे में कोर्निया ग्राफ़्ट सिर्फ़ छह मिलीमीटर लग सकता था।
क्या सावधानियाँ ज़रूरी होती हैं….
इसके अलावा छोटे बच्चों में कोर्निया ग्राफ़्ट करते समय डोनर कोर्निया में ज़रूरी ‘एपीथिलियल सेल’ की संख्या सामान्य से अधिक होनी चाहिए ताकि उम्र भर बच्चों को कोई यह समस्या फिर से न आए। कोर्निया डोनर ढूँढना भी एक चुनौती थी। सामान्य ग्राफ़्ट के लिए डोनर कोर्निया में प्रति वर्ग मिलीमीटर दो हज़ार एपीथिलीयल सेल बहुत होते हैं, लेकिन बच्चों के मामले में इनकी संख्या तीन हज़ार से अधिक चाहिए होती है।
अब तक पाँच हज़ार से अधिक वयस्क मरीज़ों और बच्चों में कोर्नियल ओपेसिटी के मामलों में दो सौ से अधिक कोर्निया ग्राफ़्ट कर चुके डॉक्टर अशोक शर्मा का कहना है कि बच्चों में कोर्निया ग्राफ़्ट कुछ समय बाद रिजेक्ट हो जाने का ख़तरा बड़ी उम्र के मरीज़ों के मुक़ाबले अधिक होता है, जिससे बचने के लिए बहुत अधिक सावधानियाँ बरतनी होती हैं, इन सावधानियों में बच्चे को दिया जाने वाला जनरल एनिस्थिसिया भी अहम होता है।
कानु के केस में बच्ची की एक आँख की सर्जरी छह महीने की उम्र में की गई और एक महीने बाद दूसरी आँख की। उसके बाद कुछ समय तक दवाएं दी जाती रही। कानु इस साल से स्कूल जाने लगेगी।
डॉक्टर शर्मा के मुताबिक़, “सफल सर्जरी के बाद जब बच्ची ने पलकें झपकाई और मुस्कराई तो मुझे महसूस हुआ कि मैंने समाज और मानवजाति की भलाई के लिए अपना योगदान दिया है”।
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